Wednesday, August 15, 2012

लव, राजनीति और हरियाणा कनेक्शन .


 ‘कहते हैं कि प्यार किसी का पूरा नही होता क्योंकि प्यार का पहला अक्षर ही अधूरा होता है’ इस बात से हम आप सभी इत्तेफाक रखते है। आजकल गीतिका और फिजा उर्फ अनुराधा  बाली एक के बाद एक हुई इस घटना ने सत्ता के गलियारों में हलचल मचा रखी है और हो भी क्यों न बात आखिर राजनीतिक रसूखदारों से जो जुड़ी हुई जो हैं । हमारे समाज की एक विडम्बना है कि प्यार और सेक्स की बातों को चोरी छुपे किया जाता है, क्योंकि इन पर खुलकर चर्चा करना हमारे भारतीय समाज इसकी इजाजत नहीं देता । ऐसा मैं नही  कहती बल्कि सत्ता में बैठे उन रसूखदारों का कहना है जिनकी कथनी और करनी में दूर–दूर तक कोई वास्ता नहीं है । अगर यह सच नहीं होता तो गीतिका और अनुराधा  बाली उर्फ फिजा की यह हालत ना होती । दोनों ही पढ़ी लिखी, समझदार बोल्ड अंदाज की थी फिर भी इन दोनों ने मौत को गले लगाकर कहीं न कहीं बेअक्ली का सबूत दिया है । गीतिका का कांडा और फिजा का चंद्रमोहन से जुड़ाव एक पल का नहीं था । गीतिका का कांडा की कंपनी में काम करना फिर दुबई जाने से वापस आने के बाद उसकी कंपनी दोबारा ज्वाइन करना । कांडा के कैम्ब्रिज कैंपस का ट्रस्टी होना । कॉलेज के दिनों से ही कांडा का गीतिका के प्रति आर्कषण यहां तक कि उसके उधार माफ करना, एमबीए की पढ़ाई पर पैसा लगाना और सबसे बड़ी दुबई में गीतिका के नाम की सम्पत्ति खरीदना । ये सब चीजें कही न कहीं कांडा और गीतिका की नजदीकियों को दर्शाता है । उसके परिवार वालों का कांडा पर आरोप कि उनकी बेटी के सुसाइड के पीछे कांडा का हाथ है ।
नि संदेह यह बात गीतिका के सुसाइड नोट से भी साबित हुई है । मैं यहां कांडा का पक्ष नहीं ले रही हुं, लेकिन कांडा की गीतिका के परिवार से नजदीकियां घर वालों का गीतिका के मौत के बाद सारे राज से परदा उठाना कहां तक लाजमी है ? क्या वे नही जानते थे कि कांडा और उनकी बेटी के बीच क्या चल रहा है ? अगर फैमिली सही समय पर एक्शन ले लेती तो शायद गीतिका आज हमारे बीच होती ।  दूसरा पक्ष अनुराधा  बाली उर्फ फिजा स्वभाव से तेजतर्रार वकील । 18 अप्रैल 2002 को फीमेल जज से झगड़ा करना, एग्जाम्स में मार्किग में शक होने पर बगावत करने वाली फिजा का मुंह में ब्लेड निगलना । बेबाक होकर धर्म परिवर्तन करके हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और भजन लाल के बेटे चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद से निकाह करना । यह जानते हुए कि वह पहले से ही शादीशुदा है ।वाकई में फिजा तारीफ ए काबिल है । उस समाज में अपने रिश्ते को जगजाहिर करना जहां आज भी पुरुष प्रधान है । ‘जहां पर मर्द की सौ गल्तियां भी माफ है, लेकिन एक औरत की पहली गलती ही उसकी आखिरी गलती साबित होती है ।’ अब आप बताइए इतनी बेबाक, खूबसूरत और बोल्ड अदा वाली अनुराधा बाली सुसाइड कर सकती है ?

पुरुषों की अहमवादी सोच
एक समय फिजा पर जान छिड़कने वाले यहां तक कि उसके लिए धर्म परिवर्तन भी किया, राजनीतिक ओहदा, परिवार, समाज सबसे बगावत करने वाले चांद मोहम्मद को अचानक क्या हो गया कि शादी के मात्र तीन महीने बाद 14 मार्च 2009 को फोन पर ही तलाक तलाक कहकर पीछा छुड़ा लिया । वही दूसरी तरफ गीतिका के प्यार का कलमा पढ़ने वाले सिरसा से विधायक और पूर्व राज्य गृहराज्यमंत्री गोपाल कांडा ही उसकी मौत का कारण बना । इन सब बातों से जो तस्वीर उभर कर सामने आती है वह है पुरुषों की अहमवादी सोच । पुरुष प्रधान समाज में मर्द ने औरत को यूज एंड थ्रो बना लिया है । जब मन किया गले से लगाया और जब दिल भर गया तो उसे मौत तक पहुंचाया!  

औरत ही बलि का बकरा क्यों  ?
हमारे समाज में हर गलती का ठीकरा औरत के सिर ही फोड़ा जाता है जबकि मर्द लाख गलती करके भी पाक साफ बना रहता है । भले ही मर्द अपनी मर्जी से ही दूसरी औरत के साथ रिलेशन में हो लेकिन इसका दोषी औरत को ही ठहराया जाता है । उसे नये नये नामों की उपाधि दे दी जाती है । पुरुष हर गलती के बाद वापसी कर सकता है पर एक औरत से यह अधिकार भी छीन लिया जाता है । परिवार, समाज सभी उससे मुंह मोड़ लेते हैं । उदाहरण के तौर पर मधुमिता हत्याकांड में आरोपी अमरमणि त्रिपाठी को कोर्ट 2007 में जब आजीवन कारावास की सजा सुनाती है तो उसी साल महाराजगंज से वह चुनाव जीत जाता है लेकिन उस मधुमिता जैसी औरतों को गलती करने पर सजा ए मौत मिलती है । गीतिका, फिजा, रुचिका, शेहला, प्रियदर्शिनी मुट्टू, जेसिका लाल, भंवरी, मधुमिता जैसे लोग मौत की दहलीज पार कर जाते है जबकि इनके हत्यारे आज भी जिंदा है । क्यों ये लोग सुसाइड नहीं करते, क्यों ये लोग मौत की दहलीज पार नहीं करते, आखिर क्यों ? यह एक सोचनीय प्रश्न है ? आज यह सारे उदाहरण हमारे सामने  है  क्योंकि ये सब राजनीति रसूखदारों से जुड़े है पर उनका क्या जो हमारे आपकी तरह एक सामान्य परिवार से आती है और फिर गुमनामी के भंवर में खो जाती है  । इन्हें न तो मीडिया हाईलाइट करता है और न ही पुलिस ।

हरियाणा कनेक्शन
अभी तक जितने भी केस हमारे सामने आये हैं वो सब राजनीतिक हस्तियों से सरोकार रखते हैं लेकिन इसमें अधिकतर  केस हरियाणा कनेक्शन को बयां करते हैं ।
जेसिका लाल–मनु शर्मा,  रुचिका गिरहोत्रा– एस पी एस राठौर, फिजा–चंद्र मोहन, गीतिका–गोपाल कांडा

क्यों चुप हैं महिला राजनेता
गुवाहटी कांड पर बड़ी जिंदादली से लड़कियों  के ड्रेसिग सेंस पर बयान देने वाली राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष  ममता शर्मा की खामोशी का राज क्या ? लड़की का नाम जगजाहिर करने वाली अलका लांबा क्यों हैं चुप ? तब तो बड़ी बेबाकी से ममता शर्मा ने लड़कियों पर कमेंट कर दिया था  पर यहां तो इतर परिस्थितयां न रेप और न छेड़छाड़ । क्यों नहीं करती अपनी तरफ से कोई कवायद, जिससे भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान और पुरुषों के बराबर समानता मिल सके । क्यों चुप है महिला राजनेता जो चुनाव के समय तो महिला अधिकार नियम और कानून की बड़ी–बड़ी बातें करती है । अगर वाकई में हमारी इन महिला राजनेताओं ने कुछ गंभीर पहल की होती तो शायद आज न तो गीतिका मरती और न ही फिजा घुटते हुए दम तोड़ती ।

   

Saturday, July 28, 2012

महिलाओं पर बयानवाजी के बजाए राष्ट्र हित में घ्यान लगाएं

                                                                           
कहा जाता है कि अल्लाह  ताला ने जब लड़की का निर्माण किया था तो अपने खाविंदों से कहा था कि जा सुबह का नूर, आफताव की तजामत, संमदर की गहराई, कहकशां की रंगीनी, मिट्टी की खुशवु, धूप  की चमक को ले आ । खाविंदो ने सारी चीजें इकठे  कर ली तो अल्लाह ताला ने लड़की का निर्माण किया । इस बात को लेकर खाविंदों ने कहा कि जब सारी चीजें हम लोगों ने ही लाया तो आपने इसमें क्या डाला । अल्लाह ताला ने बड़े ही मुस्कुराते हुए अंदाज में जवाब दिया मैने इसमें जो चीज डाली है वह वह है मोहब्बत । महिलाओं की गहराई और महिलाओं के प्रति आस्था न रख उसे तिजारत भरी नजरों से देखना पाप समझा जाता है । चाहे वह कोई भी महिला क्यों न हो । उसके दर्द उसकी पीड़ा को समझें तो खुद व खुद एहसास होगा कि महिलाएं समाज के लिए अभिशाप नहीं है बल्कि यह समाज में छाए पाप को भी पवित्र पावनी गंगा की तरह धो  डालती हैं । आज समाज में जो महिलाओं के प्रति नजरिया है वह एक संकुचित मानसिकता को दर्शाता है । जिसका नतीजा है कि आए दिन उसके साथ घटनाएं घटती रहती हैं । 
नौ जुलाई को गुवाहटी में स्कूली लड़की के साथ जो हादसा हुआ वो वाकई में दिल दहलाने वाला हादसा था । हमारे देश में जब भी ऐसे हादसे होते है , तो उस पर कड़ी कार्यवाही करने और दोषियों को सजा दिलाने के अलावा फालतू की बयानबाजी का दौर शुरु हो जाता है । इसके साक्षात गवाह हम स्वयं है! इस प्रकरण के बाद राजनीतिक खेमे से जो प्रतिक्रियाये सामने आयी वह वाकई निंदनीय है । राष्ट्रीय महिला आयोग की अधयक्षा ममता शर्मा का यह ब्यान कि लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने से परहेज करना चाहिए , वेर्स्टन कल्चर की नकल करने के कारण ही इस तरह के हादसे होते हैं । तो महिला आयोग की अधयक्षा को इस बात की जानकारी होनी चाहिए अकबर के बारे में । अकवर ने लिखा था ‘बे पर्दा नजर आई जो कल चंद बीबीयां अकबर गैरते कौमो से मर गया, पूछा जो आपका पर्दा था क्या हुआ, कहने लगी अक्ल पे मर्दो के पड़ गया ।’ आज यह पर्दा सही माने में महिला आयोग की अधयक्षा के उपर भी पड़ गई है अन्यथा वो इस तरह का बयान देने से पहले सोचती । गैर जिम्मेदाराना बयान देकर सिर्फ महिलाओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता । चलिए एक मिनट के लिए  ममता जी की बात को मान भी लेते है  फिर तो उन्हें इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि जो हादसे गांव में होते है  उसके जिम्मेदार कौन है ? क्या वहां भी इसी तरह के लिबास में लड़कियां नजर आती हैं ? क्या उनके पास इसका जवाब है । अगर है तो मै जरुर जानना चाहूंगी । इस तरह की ब्यानबाजी करने के बजाय अगर काम किया जाये तो शायद इस तरह के हादसे दुबारा न हो  । मैंने यहां पर ‘शायद’ शब्द का प्रयोग इसलिए किया है, क्यूंकि  कि हमारे देश की यह विडम्बना है कि आजादी के 65 साल बाद भी हमारे इस देश में काम पर ध्यान कम और बयानबाजी पर ज्यादा दिया जाता है । प्रश्न उठता है कि क्या एक महिला होकर इस तरह की प्रतिक्रिया देना लाजमी है ? यह तो हम सभी जानते है  कि जब भी कोई गम्भीर मुद्दा होता है तो उस पर बयानों की झड़ी सी लग जाती है । राजनैतिक खेमा विरोधी  दल के उस बयान का तोड़ ढूढनें मे लग जाते हैं लेकिन इस मामले में कुछ इतर ही परिस्थितयां नजर आ रही है  । मध्य  प्रदेश में बीजेपी के एक प्रवक्ता के बयान ने आग को कम करने की जगह उसमें घी डालने का काम किया है । इन्होंने ममता शर्मा को भी पीछे छोड़ दिया है । इनका बयान भी इस प्रकार है, कि महिलाओं को ज्यादा मेकअप और छोटे कपड़े पहनने से परहेज करना चाहिए । यह हमारे भारतीय परिदृश्य में शोभा नहीं देता है । तो प्रवक्ता जी ये बताइए क्या आपने कभी जानवरों को मेकअप करते हुए देखा है ? आज भी हमारे देश में गरीबी चरम सीमा पर है, कई लोगों की जीवन की बेसिक आवश्यकतायें भी पूरी नहीं हो पा रही है । उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब हो रही है । हमारे देश में शिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,गरीबी ऐसे अनेक मुददे  है जो हमारी तरफ मुंह बाये खड़ी है । इनके प्रति माननीय भाजपा प्रवक्ता का घ्यान नहीं जाता और भारतीय परिदृश्य की बात करते हैं । महिलाओं के मेकअप पर टिप्पणी करने की बजाय देश के हालात की तरफ भी घ्यान करेगें तो हमारे देश की तस्वीर और तकदीर दोनों ही संवर जायेगी और तब शायद 2020 तक एक विकसित देश बनने का सपना साकार हो पायेगा ।
       
 
          

Friday, January 6, 2012

सुर का दूसरा नाम..रहमान!!

ख्वाजा मेरे ख्वाजा दिल में समा जा, शाहों का शाह तु अली का दुलारा सूफियाना गीतों को अपनी रूमानी आवाज में पिरोने वाले अल्लाह रक्खा रहमान किसी पहचान के मोहताज नही है। 6 जनवरी 1966 को मद्रास की यौमे पैदाइश ए. आऱ रहमान का असली नाम दिलीप कुमार है। सुरों के बादशाह रहमान के पिता आर. के शेखर तमिल और मलयाली फिल्मों में संगीत देते थे।

अपने संगीत से लाखों दिलों की तान छेड़ने वाले रहमान का बचपन दर्द के आलम में गुजरा। मात्र नौ साल की उम्र में उन्होनें अपने पिता को खो दिया। उसके बाद हालात यूँ बदले कि पूरा परिवार पर आर्थिक तंगहाली का मन्जर छाने लगा। रहमान की माँ कस्तूरी अब करीमा बेगम ने वाद्य यन्त्रों को किराए पर देकर किसी तरह गुजर बसर किया। परिवारिक जिम्मेदारियों के चलते पन्द्रह साल की उम्र में ही रहमान ने औपचारिक शिक्षा को छोड़ दिया।

रहमान ने सन् 1987 में परिवार सहित इस्लाम धर्म को अपना लिया। मात्र ग्यारह साल की उम्र से ही रहमान ने संगीतकारो के आरकेस्ट्रा में काम करना शुरू कर दिया था। टेलीविजन के प्रोग्राम में पियानों और गिटार बजाने वाले रहमान ने संगीत की पहली शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की। वह मित्र शिवमणि के साथ बैंड रूट्स के लिए सिथेंसाइजर बजाने का काम करते थे। इलियाराजा बैंड भी इनमे से एक थे जिनके यहाँ रहमान ने तकरीबन एक साल तक काम किया। पश्चिमी संगीत की तह को समझने के लिए रहमान ने आक्सफोर्ड के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कालरशिप मिली । जहाँ उन्होंने पश्चिमी संगीत में डिग्री भी हासिल की।

जिन्दगी के इस सघर्ष को झेलते हुए सन् 1991 में रहमान ने पहली बार गाने की रिकार्डिग शुरूआत की। रहमान ने पंचतन रिकार्ड इन स्टूडियों खोला। यह उनका निजी स्टूडियो है। रहमान को सन् 1992 में मणिरत्नम की फिल्म रोजा से वह नायाब मौका मिला। जिसने उन्हें रातों रात शिखर की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया। उसके बाद तो उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी पहली ही फिल्म से ही धमाल मचाने वाले रहमान का जादू आज भी कायम है। ऐसा पहली मरतबा हुआ जब किसी संगीतकार को उसकी पहली ही फिल्म के लिए ही पुरस्कार से नवाज़ा गया हो। टाइम्स पत्रिका की 2005 में टॉप टेन मूवी साउण्डट्रेक आफ आल टाइम की लिस्ट में रोजा का नाम भी शुमार था।

मोजार्ट आफ मद्रास कहे जाने वाले रहमान को 14 फिल्म फेयर अवार्ड,13 फिल्म फेयर अवार्ड साउथ, चार राष्ट्रीय पुरस्कार. दो अकादमी, दो ग्रेमी अवार्ड और एक गोल्डन अवार्ड का खिताब से नवाज़ा जा चुका है। 11 जनवरी 2009 को रहमान पहले भारतीय संगीतकार बने, जब उन्हें हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के गाने जय हो के लिए आस्कर अवार्ड से नवाज़ा गया था। यह क्रम यही नही रूकता विश्व संगीत में योगदान के लिए (2006) में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, छह बार तमिलनाडू स्टेट अवार्ड, मध्यप्रदेश का लता मंगेशकर अवार्ड ,पदमश्री (2006)और पदम विभूषण (2010) से सम्मनित किया गया है।

अवार्ड पुरूष बने रहमान प्रयोग करने मे भी महारत हासिल है। रहमान ने सुखविन्दर, मधु श्री, विजय येसुदास जैसी अनगिनत आवाजों को तराशा है। इसी प्रयोग का उदाहरण है फिल्म गुरू का गाना मैय्या मैय्या। यह गाना बहुत लोकप्रिय भी हुआ था। इस गाने को रहमान ने एक कनाडाई गायक मरियम टोलर से गवाया था।

रहमान ने गाने को इस तरह से अपने मखमली आवाज और धुनों में सजोंया कि जिसने सबको अपना कायल बना लिया है। इसकी बानगी रंगीला, अर्थ, जुबैदा, नायक, कभी न कभी, गूरू, साथिया, तहजीब, युवा, किसना, स्वदेश , नेताजी सूभाष चन्द्र बोस, मंगल पाण्डे, लगान, रंग दे बसन्ती, जोधा अकबर, गजनी और हालिया रिलीज हुई फिल्म रॉकस्टार में साफ दिखती है। ए आर रहमान ने फिल्मों मे संगीत देने के साथ कई जबरदस्त एल्बम भी दिये है जिनमें, देश की आजादी की 50वीं वर्षगाठ पर 1997 में वन्दे मातरम, भारत बाला के निर्देशन में जन गण मन बहुत मशहूर हुए है। रहमान ने कई विज्ञापन जिंगल लिखकर उनका सगीत भी तैयार किया है। उन्होंने जाने माने कारियोग्राफर प्रभु देवा शोभना के साथ मिलकर तमिल डान्सरों का ग्रुप बनाकर माइकल जैक्सन के साथ मिलकर स्टेज प्रोग्राम दिये है।

सुरो के बादशाह रहमान ने सूफीयाना संगीत से भरे कई नगमें भी लोगो की ज़ुबा पर छाये रहते है। अरजियाँ (दिल्ली6), पिया हाजी अली (फिजा), जिक्र (बोस द फारगेटन हीरो), मरहबा या मुस्तफा (अल रिस्लाह), कुन फाया कुन(रॉकस्टार) जैसे कई सुफियाना गानों ने लोगो को अपना मुरीद बनाया है।

रूमानी आवाज और बेहतरीन संगीतकार ए आर रहमान वह नायाब हीरा है। जो कामयाबी और शोहरत की बुलन्दियों पर पहुँचने के बाद भी अहम से परे है। उनकी जाती जिन्दगी भी विवादों से कोसों दूर है।

संगीत के इस जादूगर ने ना सिर्फ हिन्दी सिनेमा में बल्कि तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़ सहित हॉलीवुड की फिल्मों में संगीत देकर अपना एक खासा मुकाम बनाया है। रहमान भारतीय सिनेमा की वह शख्सियत है। जो शब्दों से कम और संगीत से ज्यादा बोलते हैं।

सुरों के सम्राट अल्लाह रक्खा रहमान के लिए हम यही दुआ करते है। वो यूँ ही इस तरह संगीत के गुल्सता में खूबसूरत नगमों की तान छेड़ते रहे।

Wednesday, December 28, 2011

आई हेट टियर्स

ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ अरे छोड़ो ये न पूछोवाकई में बेबाक अन्दाज, रूमानी चेहरा और बेहतरीन अदाकारी के धनी काका ऊर्फ राजेश खन्ना नाजाने कब बॉलीबुड के आका बन बैठे पता ही नही चला। सत्तर के दशक के पहले सुपरस्टार के रूप में बॉलीवुड को ऐसा नायाब हीरा मिला जिसकी चमक इस दशक में भी कायम है।

24 वर्ष की उम्र से ही अपने जबरदस्त अभिनय का हुनर दिखाने वाले राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसम्बर 1942 को अम्रतसर मे हुआ था। कहते है कि नाम मे क्या रखा है, लेकिन पंजाब में जन्मे जतिन खन्ना को असल पहचान राजेश खन्ना नाम से ही मिली है। जहाँ एक तरफ बॉलीवुड में गॉडफादर का सिक्का चलता है वही राजेश खन्ना ने आल इण्डिया टेलेन्ट हंट को जीतकर हिन्दी सिनेमा में अपने दम पर मुकाम हासिल किया है।

बाव्य नेक्स डोर कहे जाने वाले राजेश खन्ना ने वर्ष 1966 में आखिरी खतसे बॉलीवुड में आगाज़ किया। सन् 1967 में औरत, राज ,बहारों के सपने जैसी कई फिल्मों ने उनके अरमानो पर पानी फेरा। पर कहते हैं कि मन के हारे हार है, और मन के जीते जीत’, राजेश खन्ना ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आखिरकार वर्ष 1969 में रिलीज हुई फिल्म आराधना में राजेश खन्ना को नायाब मौका मिला जिसने उन्हें रातों रात शाइनिग स्टार बना दिया। इस फिल्म के बाद उन्होनें कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1969 में इत्तेफाक, दो रास्ते ,1970 में सफर, सच्चा झूठा, कटी पंतग आन मिलो सजना, 1971 में कटी पंतग, आनन्द, हाथी मेरे साथी , 1972 में अमर प्रेम, अपना देश, बावर्ची, दुश्मन, 1973 में नमक हराम, दाग, आविष्कार और 1974 में आपकी कसम, प्रेम नगर, रोटी जैसी कई हिट फिल्मों का सेहरा बालीवुड के काका के सर बँधा।

सत्तर के दशक के इस दौर में राजेश खन्ना एक के बाद एक स्टारडम की सीढ़िया चढ़ते चले गये। शायद यही कारण था सुन्दर सालोने वाले इस रोमेन्टिक चेहरे पर लड़कियाँ अपनी जान निसार करती थी। दिलकश अन्दाज वाले राजेश खन्ना का सुरूर उनकी फीमेल फैन्स पर इस कदर छाया रहता था कि वह अपने खून से उन्हें खत लिखा करती थी। लाखों हसीनाओं के ड्रीम ब्वाय बन चुके राजेश खन्ना के रोमान्स के किस्सों ने भी काफी सुर्खिया बटोरी थी। फैशन डिजाइनर और अभिनेत्री अन्जू महेन्द्रु के साथ सत्रह साल और टीना मुनीम के साथ सम्बन्धो ने भी बॉलीवुड के गलियारों में काफी सनसनी मचाई थी ,लेकिन सुपरस्टार बन चुके राजेश खन्ना बाबी गर्ल डिम्पल कपाडिया के हाथों दिल हार बैठे और 1973 में यह जोड़ी शादी के बन्धन में बँध गयी। हालाकि दोनों जिन्दगी का सफर तय करने में नाकाम रहे । टिविकल और रिकी खन्ना के माँ बाप बनी यह जोड़ी अब साथ नहीं है।

प्यार और रोमान्स के साथ दर्द के एहसास को जिन्दादिली के साथ पर्दे पर जीना इसकी बानगी अगर कही दिखती है तो वह है राजेश खन्ना !! फिल्म आनन्द में एक लाइलाज बीमारी लिम्फोसारकोमा आफ इन्टस्टाईनस से पीड़ित किरदार को निभाकर राजेश खन्ना ने बेहतरीन अभिनय की मिशाल पेश की । जिन्दगी को जिन्दादिली से जीने वाले राजेश खन्ना को सन् 1971 में इस फिल्म के लिए फिल्म फेयर के बेस्ट एक्टर के खिताब से नवाज़ा गया। फिल्म सच्चा झूठा (1971) और आविष्कार (1973) समेत फिल्म फेयर के लाइफ अचीवमेंट अवार्ड(2005) से सम्मानित किये जाने वाले इस रोमेन्टिक हीरो ने अपनी बेहतरीन अभिनय के दम पर आने वाली पीढ़ियों के लिए माल का पत्थर साबित किया है।

वैसे तो राजेश खन्ना ने अपने फिल्मी सफर में कई अदाकाराओं के साथ काम किया है लेकिन शर्मिला टैगोर और मुमताज जैसी अभिनेत्रियों के साथ उनकी जोड़ी को सबसे ज्यादा सराहा गया । रूपहले परदे पर हिरोईनों के साथ हिट जोड़ी बनाने वाले राजेश खन्ना की किशोर कुमार के साथ भी उम्दा जोड़ी के रूप में उभरकर सामने आयी। रोमेन्टिक हीरो राजेश खन्ना के साथ किशोर कुमार की जुगलबन्दी ने हिन्दी सिनेमा को कई बेहतरीन और यादगार गानों की सौगात दी। जिनमें से, आते जाते खूबसबरत, मेरे सपनों की रानी, ओ मेरे दिल के चैन, प्यार दीवाना होता है, जिन्दगी का सफर, रूप तेरा मस्ताना, कोरा कागज था ये मन मेरा, कुछ तो लोग कहेगें जैसे कई बेहतरीन नगमों ने राजेश खन्ना के फिल्मी करियर में चार चाँद लगा दिए।

कामयाबी के अर्श पर पहुँच चुके राजेश खन्ना का फिल्मी करियर 80 के दशक के बाद ढलान पर आने लगा। लगभग डेढ़ दशक तक हिन्दी सिनेमा पर अपना परचम लहराने वाले राजेश खन्ना ने राजनीति में भी कदम रखा । सन् 1991 से 1996 के बीच नई दिल्ली से काग्रेस के लोकसभा सांसद रहे राजेश खन्ना को राजनीति कुछ रास नहीं आयी। राजेश खन्ना ने फिल्म खुदाई (1994) से अपनी फिल्मी पारी की शुरूआत की, जो आ अब लौट चले(1999), क्या दिल ने कहा(2002) और जाना (2006) फिल्म से उनका फिल्मी सफर अब भी जारी है। अलहदा अन्दाज वाले राजेश खन्ना का जादू बड़े परदे से लेकर छोटे परदे पर भी छाया रहा। सन् 2001 और 2002 में राजेश खन्ना ने अपने पराये, इत्तेफाक’, ‘रघुकुल रीति सदा चली आई जैसे कई सीरियल में काम किया है।

बॉलीवुड में कामयाबी और शोहरत की बुलन्दियों पर अपना एक अलग ही मुकाम हासिल करने वाले राजेश खन्ना को उनके जन्मदिन के इस मुबारक मौके पर यही दुआ देना चाहेगें

आप वो फूल हो जो गुलशन में तो नही खिलते

पर जिसपे आसमान के फ़रिश्ते भी फ्रक करते

आपकी जिन्दगी हद से ज़्यादा कीमती है

जन्म दिन आप हमेशा मनाएँ यूँ ही हँसते हँसते”….

Sunday, May 22, 2011

चुलबुल बना डिस्कवरी.......

बॉलीवुड इक ऐसी जगह है ......जहा पर दोस्ती के किस्से कम और दुश्मनी के ज्यादा सुनाई देते है ....... i .. me & my self ........पर विशवास करने वाले चुलबुल पांडे के बॉलीवुड में ......दबंगई के चर्चे बहुत मशहूर है ........... शाहरुख़ , विवेक ,रणवीर कपूर ...............न जाने कितने लोगो के साथ सलमान के झगड़े के किस्से फैले हुए है .......पर कहते है न .......की हर चीज के अपवाद भी होते है .....


" A FRIEND IN NEED IS A FRIEND INDEED " .......... अगर यह उपाधि किसी को दी जानी चाहिये .....तोह वह सलमान खान है ........... दोस्ती किस तरह निभानी है इसकी क्वालिटी केवल इन्ही के पास है ........इसी के साथ -साथ वह हमेशा नयी -नयी खोज करने के लिए भी जाने जाते है । जब भी बॉलीवुड में कोई नया चेहरा पेश होता है तोह .........उसके पीछे सल्लू मियां का हाथ जरूर होता है ........


स्नेहा उल्लाल ( LUCKY) ...... कटरीना ( MAINE DIL TUJHKO DIYA ) ..... ज़रीन खान ( VEER) ...........
ब्रूना अब्दुल्ला (CASH ITEM SONG ).........सोनाक्षी सिन्हा (DABANGG) ..........इन सभी का रास्ता बॉलीवुड में सलमान ने ही खोला ........यानी चुलबुल पांडे बॉलीवुड में .......डिस्कवरी पर्सन बन गए है ......जो हमेशा कुछ न कुछ नयी खोज करते ही रहते है ........


अगर दोस्ती की बात देखि जाय तोह सलमान खान इसमें भी पीछे नही है ......... अब गोविंदा की ही बात ले लीजिये ..जिनके डूबते फ़िल्मी करियर की नैया के खवैया यही बने ........फिल्म पार्टनर में सलमान ने ......ची ची (गोविंदा)
को बॉलीवुड में फिर से एंट्री दिला दी .......अब तोह खबर यह भी है .......की चुलबुल की चुलबुली दया अब .......नर्मदा
जो गोविंदा की बेटी है .......उन पर भी होने वाली है ........यानी कुछ दिनों बाद हमे फिर इक नयी खोज दिखाई देगी..

अभी हाल ही में .......ज़रीन खान ने कहा की जब भी वह मुसीबत में होती है .......तोह सलमान के पास जाती है ......
सायद यही वजह है की .........वीर की असफलता के बाद भी ........सलमान ने उन्हें फिर से इक नया मौका दिया ...इक अच्छा एक्टर होने के साथ -साथ ........इक अच्छा इंसान होना भी बहुत जरुरी है ...... यह बात भी सल्लू मिया ने साबित कर दी है ...... इसलिए ..चैरिटी में सबसे आगे सलमान ही रहते है ........."BEING HUMAN " संस्था से जुड़ने के बाद RAMP WALK करके जमकर इसकी पब्लिसिटी भी की ........ यह इसी बात को दर्शाता है .....


खैर हम तोह यही दुआ करेंगे की ........चुलबुल पाण्डेय का दोस्ताना और डिस्कवरी यूं ही चलता रहे .......ताकि हमे भी इसी तरह बॉलीवुड में नए - नए चेहरे दिखाई देते रहे ...........

Wednesday, May 18, 2011

दर्द अभी बाकी है ..

आजकल जहा देख रही हूँ वही पर ..उत्तर प्रदेश छाया हुआ है । टी.वी.चैनल ,अखबार , या फिर लोगो की बात चीत ..सब जगह बस इसी के ही चर्चे है । आखिर हो भी क्यों न ?अगली बारी उत्तर प्रदेश की है ..मिसन२०१२ ..बहुत दिनों से भट्टा परसोल के चर्चे सुन सुन कर कान पक गये है ..इस मुद्दे को सुलझाने से ज्यदा उलझाया जा रहा है । सभी अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग गा रहे है.. और.. पार्टिया अपनी राजनीतिक रोटिया सेकने में लगी हुई है ..इसका भी इक ही उत्तर है ..सिर्फ चुनावी स्टंट .....बस किसी तरह नैया पार लग जाय फिर खेवैया हो मस्त ..और....जनता रहे त्रस्त!!!!

भट्टा परसोल गाव की न्यूज़ देखते देखते ....अचानक इक बहुत ही प्रसिद्ध नारा याद आ गया .."जय जवान जय किसान " (लाल बहादुर शास्त्री ) ...........यहाँ किसान भी त्रस्त है और जवान भी पस्त है .......यहाँ जवान से मेरा मतलब युवा से है !! ........ इक दिन बस स्टॉप पर स्टुडेंट ग्रुप आपस में बहस कर रहे थे .... मुद्दा था ....उत्तर प्रदेश
मैंने भी उन्हें ज्वाइन किया .......बहुत लम्बी बहस चली .....सबने अपना अपना opinion दिया ......तभी इक स्टुडेंट ने अपना opinion कुछ इस तरह दिया ...... अभी हाल में ही मायावती सरकार ने अपना ४ कार्य काल पूरा किया ........इसका अच्छा खासा विज्ञापन भी करवाया गया .......लेकिन उसमे इक चीज मिस थी ....और वह है youth!! ....उनोहोने हमारे लिए क्या किया ?

करोड़ो रूपए के पत्थर की जगह .....industry ..plant .....या बाहर से कंपनी को बुला कर उत्तर प्रदेश की शिक्षा में इक नया विकास कर सकती थी ..... प्लेसमेंट बेस अच्छा बना सकती थी .........जो आज युवा की सबसे ज्यादा जरुरत है ....बेरोजगारी और अशिक्षा इस कदर फैली हुई है .......उसे अभी तक दूर नही किया जा सका है ....आज लोग अपनी खेती -बाड़ी बेचकर कर्जा लेकर अपने बच्चो को पढ़ा रहे है .......पर क्या वोह सफल हो गये है अपने इस काम में ? तोह मेरा जवाब है नही .....मुझे उनका opinion अच्छा लगा ....वाकई में आज भी हमारे राज्य में अच्छे अच्छे डिग्री धारक लोग बेठे हुए है .....इक अच्छी पढाई करके भी उन्हें बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है ..बेठने की बजाय वह दुसरे राज्यों में जा रहे है .....ऐसा क्यों हो रहा है ? .....वाकई में यह बहुत शर्मनाक बात है हमारे लिए .........क्या हम इतना गए गुजरे है की अपने राज्य में रोजगार पैदा नही कर सकते है !!

यहाँ पर सरकार बदलते ही संस्थानों और विभागों के नाम बदल जाते है ......अगर यही बदलाव रोजगार और सिक्षा के मामले किया जाता तोह आज हमारा राज्य इतना पीछे नही रहते .....पूछने पर सब इक दुसरे को जिम्मेदार ठहराते है यानी ......."ढाक के तीन पात "..इसके पिछड़ेपन किसी इक को जिम्मेदार नही माना जा सकता है ........अगर हम अपने पाले की गेंद को दुसरे पाले में फेकने की बजाय अपनी गलतियों और कमियों पर काम करे ..तोह यह ज्यदा अच्छा होगा उत्तर प्रदेश के भविष्य के लिए !!


कभी कभी मैं यह सोचती हूँ .... यु.पी.की पहचान क्या है ? ......तोह सिर्फ इक ही जवाब मिलता है ...."जातिवाद"...
हमारे यहाँ जातियों का ज्यदा ही बोलबाला है ...... "हम सुधेरेंगे तोह जग सुधेरेगा" पर कही न कही हम भी इसके लिए जिम्मेदार है .....आज भी हम विकास से ज्यदा जाति देखते है ......उमीदवार की योग्यता की न आककर....उसकी जाति को आकते है ........शायद यही कारण है ....... की यहाँ पर लोग जेल में रहते हुए भी चुनाव जीत जाते है .........और फिर जब कुछ गलत होता है तोह हम अपनी गलती भी स्वीकार नही करते है .......अगर हम जाति -पात को छोड़कर ...यु .पी.के विकास पर ध्यान देते तोह आज ....इसे अच्छे नजरो से देखा जाता .......इसी का उदाहरण है महारास्ट्र और दक्षिण राज्यों में हमारे साथ दुर्व्येहव्हार........जब मैंने यु.पी.की कमियों के आकडे सर्च किये तोह ....तोह दुःख भी हुआ और ख़ुशी भी ........ख़ुशी इस बात पर की हमने विकास कर लिया है .... .....और दुःख इस बात पर .....यह नंबर अभी भी नीचे से शुरू होता है !!


भुखमरी..गरीबी ...बेरोजगारी ..शिक्षा ...कन्या भूरून हत्या .... आज भी जटिल समस्या बनी हुई है ....२०११ की जनगणना के अनुसार ....हम आबादी में सबसे ज्यदा आगे है ...ब्राजील के बराबर केवल हमारे राज्य की जनसँख्या है ....और कन्या भुरून हत्या का ग्राफ भी बढ़ा है .. क्या इस तरह हम विकास कर पायेंगे ?!! उत्तर परदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है ......लेकिन अभी भी यह पिछड़ा हुआ है .......इक बात यह भी है की .......हमारे यहाँ भावनाओं को समझने से ज्यदा....... उसका मजाक बनाया जाता है .....आज जो भी भट्टा परसोल गाव में किसानो के स्थिती इसी का इक जीता जागता उदाहरण है .....हर कोई अपना उल्लू सीधा कर रहा है .....सबने अपनी अपनी बातें कही ...... इतना बड़ा ड्रामा कर दिया ......इससे किसानो को क्या फायदा हुआ ?? कुछ भी नहीं ....जिस तरह विकास के नाम खेतो को बंजर बनाया जा रहा है ....... जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है ....वाकई में नहुत निंदनीय है ....... हमारे यहाँ पता नही क्यों हर कानून बनाने में इतना समय क्यों लगता है !! ....इसमें जरूर सुधार होना चाहिये ...... इस तरह से हम कभी विकास कर ही नही पायेंगे ....और यु.पी.की तोह बात ही निराली है ....


लिखने
को तोह बहुत कुछ लिखा जा सकता है .... पर लिखने के साथ -साथ करने की जरुरत है ....और उसी में हम पीछे है... जिस दिन हम करना सीख लेंगे उस दिन उत्तर प्रदेश और भारत दोनों की tasveer बदल जायगी ....

Saturday, April 16, 2011

ऐसा क्यों होता है ????

आज कल ज़िन्दगी इक पहेली बन गयी है ........ समझ नही पा रही हूँ की इसे सुलझाऊ कैसे ?...... मेरी समझ में ज़िन्दगी से आप जितना सीख सकते है .... शायद ही उतना कही से सीख पायेंगे । मैंने भी बहुत कुछ सीखा लेकिन सीखते सीखते ......इक चीज अभी तक नही समझ पायी हूँ


"उगते सूरज को ही हर कोई क्यों सलाम करता है "...
बहुत ही कड़वी सच्चाई है , पर बिलकुल सही है । लोग आपकी नही आपकी कुर्सी की पूजा करते है । कुछ इस तरह के विचार मेरे पापा जी के है .... वह कहते है की जब तक आप retire नही होते तब तक आपको सब पहचानते है ....लेकिन retire होने के बाद !!

शुरुआत में social networking साइड ज्वाइन करते समय इक फ्रेंड की information में tag लाइन लिखी थी .....
" if you've no name fame and money ..... no one notice to u " यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी और साथ ही साथ इक lesson भी दिया की ........

if you've name.. fame and money ....... every one will ask u ...... how r u !!

but if u don't have ..... every one says ........ who r u ??

आज अगर जितने भी सेलेब्रिटी है .... अमिताभ बच्चन , शाहरुख़ खान , सचिन तेंदुलकर ... इनका बस नाम ही काफी है .... अगर इन्हें जुकाम भी हो जाता है..... तोह वोह भी breaking न्यूज़ बन जाती है । यानी सब पैसे नाम और सोहरत का कमाल है । मान लीजिये अगर आज यही लोग watchmen.. servant.. govt. employee होते .. क्या तब इनकी वही इज़त होती है जो आज है?..... इक गरीब आदमी रोड पर मर रहा होता है तोह उसकी कोई भी सुध नही लेता है !!

जब तक आपका बल्ला चलता है ....... तब तक आपकी पूछ है ...... जहा यह बंद , तब सब कुछ बदल जाता है ।
( insurance company advertisement - sehwag nd yuvraaj ) यह लाइन भले ही ऐड के लिए बनी हो पर रियल लाइफ से inspire है । इनकी बातें छोड़ भी दे तोह इक आम आदमी का भी यही हाल है ....... जब तक आप अच्छा कर रहे होते है तब सब आपके साथ जुड़ना चाहेंगे ......... लेकिन जहा आपके बुरे दिन आये यही इक , इक करके गायब हो जाते है ।

हमारे यहाँ संस्कार और संस्कृति की बहुत दुहाई दी जाती है .... फला चीज अच्छी है .... और फला चीज खराब .... पर जो लोग इसकी बातें करते है ..... क्या वोह खुद इतने काबिल है ? भासन और परवचन तोह सभी देते है ..... आज न तोह कृष्ण और सुदामा जैसे उदाहरण है और न ही हनुमान जैसा सेवा भक्त । आज सिर्फ इक चीज बोलती है और वह है .... " ur status".... अब वोह जमाना चला गया जब लोग बिना किसी पहचान के भी आपका हाल चाल पूछ लेते थे ......... अब तोह हाय , हेल्लो भी आपका status देखकर बोला जाता हैइसके कई उदाहरण हम अपनी लाइफ में देख सकते है


पापा जी की बातें इक दम दिल को छु गयी .... की आज कल reputation का बोलबाला है ............... वाकई में किसी ने सच ही कहा है की "सूरज ना बदला ... चन्दा न बदला .... न बदला रे आसमान ..... कितना बदल गया इंसान "..........