Saturday, November 27, 2010

हजारों ख्वाइशें ऐसी

"मन है , छोटा सा ... छोटी सी आशा ... चाँद तारों को छूने की आशा , आसमानों में उड़ने की आशा " हर इंसान की कुछ कुछ ख्वाइशें जरूर होती है जिन्हें वह बस सच कर लेना चाहता है वह मैं हूँ या आप .... हमारे अंदर कुछ ऐसी ख्वाइशें हमेशा हिलोरे मारती रहती है की मानो बस इक मौका मिले और अपने सपनो के पंखो को लगा कर इस आसमा मैं उड़ चले , क्यों सच है ? अब भी हमारा तोह कुछ ऐसा ही विचार है
मानो बस इक "DIAMOND OPPORTUNITY ".... अरे भई , नहीं समझे आप जब हम किसी ख्वाइश को पूरा करना चाहते है और उसके पीछे लग जाते है , जैसे चूहे के पीछे बिल्ली और जब वह ख्वाइश पूरी हो जाय तोह हुई ये diamond opportunity . खैर कभी कभी हम अपनी ख्वाइशों के प्रति बहुत ही ज्यादा गंभीर हो जाते ही मानो बस चुटकी बजी और खवाइश पूरी लेकिन हम इंसानों का काम ही ही संघर्ष करना जो हमे भगवान ने इस दुनिया में फ्री फंड में दिया है "कुछ नहीं होगा तोह तजुर्बा होगा " ऐसा हमारे सर जी कहते है ... जो सायद उनोहोने भी अपना संघर्ष के दिनों में सीखा होगा वैसे भी कहते है की "करम करो फल की इक्षा मत करो " लेकिन हम इतने अधिक उत्सुक रहते है की बस one day cricket की तरह तुरंत रिजल्ट जाय
"अगर कोई चीज तहे दिल से मागी जाय , तोह पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में लग जाती है "ये बातें बेमानी सी लगती है जब ख्वाइशों पर फेविक्विक का मजबूत जोड़ लग जाय तोह , या फिर ख्वाइशें प्लास्टिक की हो जिस पर इसका असर हो , लेकिन क्या ऐसा हो सकता है ?? ख्वाइशें तोह दिल से जुडी होती है ,पर हर जोड़ का तोड़ तोह होता ही है मतलब "जहा चाह वह राह " ये सोच बनाये रखिये तब देखिये कैसे खुलता है ख्वाइशों का पिटारा अब ख्वाइशों की बात की है तोह इसका आसमा बहुत बड़ा होता है फिर वह किसी से भी जुडी हो सकती है चाहे वह परिवार हो , करियर हो या फिर प्यार ....
family + career + love = lot of wishes ( according to me ) वैसे और लोगो का तोह पता नहीं लेकिन मुझे लगता है की हमारे मुकुल सर को इंडिया टुडे की तरफ से जो रेस्पेक्ट मिला मिला है उसने जरूर उनकी इस ख्वाइश को पूरा कर दिया होगा
हम इंसानों की फितरत है की इक खवाइश पूरी नहीं की दूसरी हाज़िर , ख्वाइशें सीढ़ियों की तरह होती है जो इक के बाद इक बढती जाती है पर सीढ़ियों का भी अंत होता है पर ख्वाइशों का !!!! लेकिन अब हम जैसे youngsters जिन्होंने अब शुरुआत की है अभी तोह वह इक के बाद इक करके ही बढना चाहते है क्यों है , वैसे भी कल किसने देखा है वैसे भी ख्वाइशों के पुल बनाने में कोई टैक्स नहीं लगता है बस उसकी जरूर जड़ मजबूत होनी चाहिये यानी बुलंद इरादों की सोच
अंत में बस इतना चाहती हूँ की वैसे मेरी भी कई ख्वाइशें , सब नहीं बताऊगी हाँ पर इक जरूर बताना चाहूंगी और वह है , interview of mukul sir बस समय का इन्तजार है