Wednesday, August 15, 2012

लव, राजनीति और हरियाणा कनेक्शन .


 ‘कहते हैं कि प्यार किसी का पूरा नही होता क्योंकि प्यार का पहला अक्षर ही अधूरा होता है’ इस बात से हम आप सभी इत्तेफाक रखते है। आजकल गीतिका और फिजा उर्फ अनुराधा  बाली एक के बाद एक हुई इस घटना ने सत्ता के गलियारों में हलचल मचा रखी है और हो भी क्यों न बात आखिर राजनीतिक रसूखदारों से जो जुड़ी हुई जो हैं । हमारे समाज की एक विडम्बना है कि प्यार और सेक्स की बातों को चोरी छुपे किया जाता है, क्योंकि इन पर खुलकर चर्चा करना हमारे भारतीय समाज इसकी इजाजत नहीं देता । ऐसा मैं नही  कहती बल्कि सत्ता में बैठे उन रसूखदारों का कहना है जिनकी कथनी और करनी में दूर–दूर तक कोई वास्ता नहीं है । अगर यह सच नहीं होता तो गीतिका और अनुराधा  बाली उर्फ फिजा की यह हालत ना होती । दोनों ही पढ़ी लिखी, समझदार बोल्ड अंदाज की थी फिर भी इन दोनों ने मौत को गले लगाकर कहीं न कहीं बेअक्ली का सबूत दिया है । गीतिका का कांडा और फिजा का चंद्रमोहन से जुड़ाव एक पल का नहीं था । गीतिका का कांडा की कंपनी में काम करना फिर दुबई जाने से वापस आने के बाद उसकी कंपनी दोबारा ज्वाइन करना । कांडा के कैम्ब्रिज कैंपस का ट्रस्टी होना । कॉलेज के दिनों से ही कांडा का गीतिका के प्रति आर्कषण यहां तक कि उसके उधार माफ करना, एमबीए की पढ़ाई पर पैसा लगाना और सबसे बड़ी दुबई में गीतिका के नाम की सम्पत्ति खरीदना । ये सब चीजें कही न कहीं कांडा और गीतिका की नजदीकियों को दर्शाता है । उसके परिवार वालों का कांडा पर आरोप कि उनकी बेटी के सुसाइड के पीछे कांडा का हाथ है ।
नि संदेह यह बात गीतिका के सुसाइड नोट से भी साबित हुई है । मैं यहां कांडा का पक्ष नहीं ले रही हुं, लेकिन कांडा की गीतिका के परिवार से नजदीकियां घर वालों का गीतिका के मौत के बाद सारे राज से परदा उठाना कहां तक लाजमी है ? क्या वे नही जानते थे कि कांडा और उनकी बेटी के बीच क्या चल रहा है ? अगर फैमिली सही समय पर एक्शन ले लेती तो शायद गीतिका आज हमारे बीच होती ।  दूसरा पक्ष अनुराधा  बाली उर्फ फिजा स्वभाव से तेजतर्रार वकील । 18 अप्रैल 2002 को फीमेल जज से झगड़ा करना, एग्जाम्स में मार्किग में शक होने पर बगावत करने वाली फिजा का मुंह में ब्लेड निगलना । बेबाक होकर धर्म परिवर्तन करके हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और भजन लाल के बेटे चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद से निकाह करना । यह जानते हुए कि वह पहले से ही शादीशुदा है ।वाकई में फिजा तारीफ ए काबिल है । उस समाज में अपने रिश्ते को जगजाहिर करना जहां आज भी पुरुष प्रधान है । ‘जहां पर मर्द की सौ गल्तियां भी माफ है, लेकिन एक औरत की पहली गलती ही उसकी आखिरी गलती साबित होती है ।’ अब आप बताइए इतनी बेबाक, खूबसूरत और बोल्ड अदा वाली अनुराधा बाली सुसाइड कर सकती है ?

पुरुषों की अहमवादी सोच
एक समय फिजा पर जान छिड़कने वाले यहां तक कि उसके लिए धर्म परिवर्तन भी किया, राजनीतिक ओहदा, परिवार, समाज सबसे बगावत करने वाले चांद मोहम्मद को अचानक क्या हो गया कि शादी के मात्र तीन महीने बाद 14 मार्च 2009 को फोन पर ही तलाक तलाक कहकर पीछा छुड़ा लिया । वही दूसरी तरफ गीतिका के प्यार का कलमा पढ़ने वाले सिरसा से विधायक और पूर्व राज्य गृहराज्यमंत्री गोपाल कांडा ही उसकी मौत का कारण बना । इन सब बातों से जो तस्वीर उभर कर सामने आती है वह है पुरुषों की अहमवादी सोच । पुरुष प्रधान समाज में मर्द ने औरत को यूज एंड थ्रो बना लिया है । जब मन किया गले से लगाया और जब दिल भर गया तो उसे मौत तक पहुंचाया!  

औरत ही बलि का बकरा क्यों  ?
हमारे समाज में हर गलती का ठीकरा औरत के सिर ही फोड़ा जाता है जबकि मर्द लाख गलती करके भी पाक साफ बना रहता है । भले ही मर्द अपनी मर्जी से ही दूसरी औरत के साथ रिलेशन में हो लेकिन इसका दोषी औरत को ही ठहराया जाता है । उसे नये नये नामों की उपाधि दे दी जाती है । पुरुष हर गलती के बाद वापसी कर सकता है पर एक औरत से यह अधिकार भी छीन लिया जाता है । परिवार, समाज सभी उससे मुंह मोड़ लेते हैं । उदाहरण के तौर पर मधुमिता हत्याकांड में आरोपी अमरमणि त्रिपाठी को कोर्ट 2007 में जब आजीवन कारावास की सजा सुनाती है तो उसी साल महाराजगंज से वह चुनाव जीत जाता है लेकिन उस मधुमिता जैसी औरतों को गलती करने पर सजा ए मौत मिलती है । गीतिका, फिजा, रुचिका, शेहला, प्रियदर्शिनी मुट्टू, जेसिका लाल, भंवरी, मधुमिता जैसे लोग मौत की दहलीज पार कर जाते है जबकि इनके हत्यारे आज भी जिंदा है । क्यों ये लोग सुसाइड नहीं करते, क्यों ये लोग मौत की दहलीज पार नहीं करते, आखिर क्यों ? यह एक सोचनीय प्रश्न है ? आज यह सारे उदाहरण हमारे सामने  है  क्योंकि ये सब राजनीति रसूखदारों से जुड़े है पर उनका क्या जो हमारे आपकी तरह एक सामान्य परिवार से आती है और फिर गुमनामी के भंवर में खो जाती है  । इन्हें न तो मीडिया हाईलाइट करता है और न ही पुलिस ।

हरियाणा कनेक्शन
अभी तक जितने भी केस हमारे सामने आये हैं वो सब राजनीतिक हस्तियों से सरोकार रखते हैं लेकिन इसमें अधिकतर  केस हरियाणा कनेक्शन को बयां करते हैं ।
जेसिका लाल–मनु शर्मा,  रुचिका गिरहोत्रा– एस पी एस राठौर, फिजा–चंद्र मोहन, गीतिका–गोपाल कांडा

क्यों चुप हैं महिला राजनेता
गुवाहटी कांड पर बड़ी जिंदादली से लड़कियों  के ड्रेसिग सेंस पर बयान देने वाली राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष  ममता शर्मा की खामोशी का राज क्या ? लड़की का नाम जगजाहिर करने वाली अलका लांबा क्यों हैं चुप ? तब तो बड़ी बेबाकी से ममता शर्मा ने लड़कियों पर कमेंट कर दिया था  पर यहां तो इतर परिस्थितयां न रेप और न छेड़छाड़ । क्यों नहीं करती अपनी तरफ से कोई कवायद, जिससे भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान और पुरुषों के बराबर समानता मिल सके । क्यों चुप है महिला राजनेता जो चुनाव के समय तो महिला अधिकार नियम और कानून की बड़ी–बड़ी बातें करती है । अगर वाकई में हमारी इन महिला राजनेताओं ने कुछ गंभीर पहल की होती तो शायद आज न तो गीतिका मरती और न ही फिजा घुटते हुए दम तोड़ती ।

   

Saturday, July 28, 2012

महिलाओं पर बयानवाजी के बजाए राष्ट्र हित में घ्यान लगाएं

                                                                           
कहा जाता है कि अल्लाह  ताला ने जब लड़की का निर्माण किया था तो अपने खाविंदों से कहा था कि जा सुबह का नूर, आफताव की तजामत, संमदर की गहराई, कहकशां की रंगीनी, मिट्टी की खुशवु, धूप  की चमक को ले आ । खाविंदो ने सारी चीजें इकठे  कर ली तो अल्लाह ताला ने लड़की का निर्माण किया । इस बात को लेकर खाविंदों ने कहा कि जब सारी चीजें हम लोगों ने ही लाया तो आपने इसमें क्या डाला । अल्लाह ताला ने बड़े ही मुस्कुराते हुए अंदाज में जवाब दिया मैने इसमें जो चीज डाली है वह वह है मोहब्बत । महिलाओं की गहराई और महिलाओं के प्रति आस्था न रख उसे तिजारत भरी नजरों से देखना पाप समझा जाता है । चाहे वह कोई भी महिला क्यों न हो । उसके दर्द उसकी पीड़ा को समझें तो खुद व खुद एहसास होगा कि महिलाएं समाज के लिए अभिशाप नहीं है बल्कि यह समाज में छाए पाप को भी पवित्र पावनी गंगा की तरह धो  डालती हैं । आज समाज में जो महिलाओं के प्रति नजरिया है वह एक संकुचित मानसिकता को दर्शाता है । जिसका नतीजा है कि आए दिन उसके साथ घटनाएं घटती रहती हैं । 
नौ जुलाई को गुवाहटी में स्कूली लड़की के साथ जो हादसा हुआ वो वाकई में दिल दहलाने वाला हादसा था । हमारे देश में जब भी ऐसे हादसे होते है , तो उस पर कड़ी कार्यवाही करने और दोषियों को सजा दिलाने के अलावा फालतू की बयानबाजी का दौर शुरु हो जाता है । इसके साक्षात गवाह हम स्वयं है! इस प्रकरण के बाद राजनीतिक खेमे से जो प्रतिक्रियाये सामने आयी वह वाकई निंदनीय है । राष्ट्रीय महिला आयोग की अधयक्षा ममता शर्मा का यह ब्यान कि लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने से परहेज करना चाहिए , वेर्स्टन कल्चर की नकल करने के कारण ही इस तरह के हादसे होते हैं । तो महिला आयोग की अधयक्षा को इस बात की जानकारी होनी चाहिए अकबर के बारे में । अकवर ने लिखा था ‘बे पर्दा नजर आई जो कल चंद बीबीयां अकबर गैरते कौमो से मर गया, पूछा जो आपका पर्दा था क्या हुआ, कहने लगी अक्ल पे मर्दो के पड़ गया ।’ आज यह पर्दा सही माने में महिला आयोग की अधयक्षा के उपर भी पड़ गई है अन्यथा वो इस तरह का बयान देने से पहले सोचती । गैर जिम्मेदाराना बयान देकर सिर्फ महिलाओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता । चलिए एक मिनट के लिए  ममता जी की बात को मान भी लेते है  फिर तो उन्हें इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि जो हादसे गांव में होते है  उसके जिम्मेदार कौन है ? क्या वहां भी इसी तरह के लिबास में लड़कियां नजर आती हैं ? क्या उनके पास इसका जवाब है । अगर है तो मै जरुर जानना चाहूंगी । इस तरह की ब्यानबाजी करने के बजाय अगर काम किया जाये तो शायद इस तरह के हादसे दुबारा न हो  । मैंने यहां पर ‘शायद’ शब्द का प्रयोग इसलिए किया है, क्यूंकि  कि हमारे देश की यह विडम्बना है कि आजादी के 65 साल बाद भी हमारे इस देश में काम पर ध्यान कम और बयानबाजी पर ज्यादा दिया जाता है । प्रश्न उठता है कि क्या एक महिला होकर इस तरह की प्रतिक्रिया देना लाजमी है ? यह तो हम सभी जानते है  कि जब भी कोई गम्भीर मुद्दा होता है तो उस पर बयानों की झड़ी सी लग जाती है । राजनैतिक खेमा विरोधी  दल के उस बयान का तोड़ ढूढनें मे लग जाते हैं लेकिन इस मामले में कुछ इतर ही परिस्थितयां नजर आ रही है  । मध्य  प्रदेश में बीजेपी के एक प्रवक्ता के बयान ने आग को कम करने की जगह उसमें घी डालने का काम किया है । इन्होंने ममता शर्मा को भी पीछे छोड़ दिया है । इनका बयान भी इस प्रकार है, कि महिलाओं को ज्यादा मेकअप और छोटे कपड़े पहनने से परहेज करना चाहिए । यह हमारे भारतीय परिदृश्य में शोभा नहीं देता है । तो प्रवक्ता जी ये बताइए क्या आपने कभी जानवरों को मेकअप करते हुए देखा है ? आज भी हमारे देश में गरीबी चरम सीमा पर है, कई लोगों की जीवन की बेसिक आवश्यकतायें भी पूरी नहीं हो पा रही है । उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब हो रही है । हमारे देश में शिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार,गरीबी ऐसे अनेक मुददे  है जो हमारी तरफ मुंह बाये खड़ी है । इनके प्रति माननीय भाजपा प्रवक्ता का घ्यान नहीं जाता और भारतीय परिदृश्य की बात करते हैं । महिलाओं के मेकअप पर टिप्पणी करने की बजाय देश के हालात की तरफ भी घ्यान करेगें तो हमारे देश की तस्वीर और तकदीर दोनों ही संवर जायेगी और तब शायद 2020 तक एक विकसित देश बनने का सपना साकार हो पायेगा ।
       
 
          

Friday, January 6, 2012

सुर का दूसरा नाम..रहमान!!

ख्वाजा मेरे ख्वाजा दिल में समा जा, शाहों का शाह तु अली का दुलारा सूफियाना गीतों को अपनी रूमानी आवाज में पिरोने वाले अल्लाह रक्खा रहमान किसी पहचान के मोहताज नही है। 6 जनवरी 1966 को मद्रास की यौमे पैदाइश ए. आऱ रहमान का असली नाम दिलीप कुमार है। सुरों के बादशाह रहमान के पिता आर. के शेखर तमिल और मलयाली फिल्मों में संगीत देते थे।

अपने संगीत से लाखों दिलों की तान छेड़ने वाले रहमान का बचपन दर्द के आलम में गुजरा। मात्र नौ साल की उम्र में उन्होनें अपने पिता को खो दिया। उसके बाद हालात यूँ बदले कि पूरा परिवार पर आर्थिक तंगहाली का मन्जर छाने लगा। रहमान की माँ कस्तूरी अब करीमा बेगम ने वाद्य यन्त्रों को किराए पर देकर किसी तरह गुजर बसर किया। परिवारिक जिम्मेदारियों के चलते पन्द्रह साल की उम्र में ही रहमान ने औपचारिक शिक्षा को छोड़ दिया।

रहमान ने सन् 1987 में परिवार सहित इस्लाम धर्म को अपना लिया। मात्र ग्यारह साल की उम्र से ही रहमान ने संगीतकारो के आरकेस्ट्रा में काम करना शुरू कर दिया था। टेलीविजन के प्रोग्राम में पियानों और गिटार बजाने वाले रहमान ने संगीत की पहली शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की। वह मित्र शिवमणि के साथ बैंड रूट्स के लिए सिथेंसाइजर बजाने का काम करते थे। इलियाराजा बैंड भी इनमे से एक थे जिनके यहाँ रहमान ने तकरीबन एक साल तक काम किया। पश्चिमी संगीत की तह को समझने के लिए रहमान ने आक्सफोर्ड के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कालरशिप मिली । जहाँ उन्होंने पश्चिमी संगीत में डिग्री भी हासिल की।

जिन्दगी के इस सघर्ष को झेलते हुए सन् 1991 में रहमान ने पहली बार गाने की रिकार्डिग शुरूआत की। रहमान ने पंचतन रिकार्ड इन स्टूडियों खोला। यह उनका निजी स्टूडियो है। रहमान को सन् 1992 में मणिरत्नम की फिल्म रोजा से वह नायाब मौका मिला। जिसने उन्हें रातों रात शिखर की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया। उसके बाद तो उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी पहली ही फिल्म से ही धमाल मचाने वाले रहमान का जादू आज भी कायम है। ऐसा पहली मरतबा हुआ जब किसी संगीतकार को उसकी पहली ही फिल्म के लिए ही पुरस्कार से नवाज़ा गया हो। टाइम्स पत्रिका की 2005 में टॉप टेन मूवी साउण्डट्रेक आफ आल टाइम की लिस्ट में रोजा का नाम भी शुमार था।

मोजार्ट आफ मद्रास कहे जाने वाले रहमान को 14 फिल्म फेयर अवार्ड,13 फिल्म फेयर अवार्ड साउथ, चार राष्ट्रीय पुरस्कार. दो अकादमी, दो ग्रेमी अवार्ड और एक गोल्डन अवार्ड का खिताब से नवाज़ा जा चुका है। 11 जनवरी 2009 को रहमान पहले भारतीय संगीतकार बने, जब उन्हें हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के गाने जय हो के लिए आस्कर अवार्ड से नवाज़ा गया था। यह क्रम यही नही रूकता विश्व संगीत में योगदान के लिए (2006) में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, छह बार तमिलनाडू स्टेट अवार्ड, मध्यप्रदेश का लता मंगेशकर अवार्ड ,पदमश्री (2006)और पदम विभूषण (2010) से सम्मनित किया गया है।

अवार्ड पुरूष बने रहमान प्रयोग करने मे भी महारत हासिल है। रहमान ने सुखविन्दर, मधु श्री, विजय येसुदास जैसी अनगिनत आवाजों को तराशा है। इसी प्रयोग का उदाहरण है फिल्म गुरू का गाना मैय्या मैय्या। यह गाना बहुत लोकप्रिय भी हुआ था। इस गाने को रहमान ने एक कनाडाई गायक मरियम टोलर से गवाया था।

रहमान ने गाने को इस तरह से अपने मखमली आवाज और धुनों में सजोंया कि जिसने सबको अपना कायल बना लिया है। इसकी बानगी रंगीला, अर्थ, जुबैदा, नायक, कभी न कभी, गूरू, साथिया, तहजीब, युवा, किसना, स्वदेश , नेताजी सूभाष चन्द्र बोस, मंगल पाण्डे, लगान, रंग दे बसन्ती, जोधा अकबर, गजनी और हालिया रिलीज हुई फिल्म रॉकस्टार में साफ दिखती है। ए आर रहमान ने फिल्मों मे संगीत देने के साथ कई जबरदस्त एल्बम भी दिये है जिनमें, देश की आजादी की 50वीं वर्षगाठ पर 1997 में वन्दे मातरम, भारत बाला के निर्देशन में जन गण मन बहुत मशहूर हुए है। रहमान ने कई विज्ञापन जिंगल लिखकर उनका सगीत भी तैयार किया है। उन्होंने जाने माने कारियोग्राफर प्रभु देवा शोभना के साथ मिलकर तमिल डान्सरों का ग्रुप बनाकर माइकल जैक्सन के साथ मिलकर स्टेज प्रोग्राम दिये है।

सुरो के बादशाह रहमान ने सूफीयाना संगीत से भरे कई नगमें भी लोगो की ज़ुबा पर छाये रहते है। अरजियाँ (दिल्ली6), पिया हाजी अली (फिजा), जिक्र (बोस द फारगेटन हीरो), मरहबा या मुस्तफा (अल रिस्लाह), कुन फाया कुन(रॉकस्टार) जैसे कई सुफियाना गानों ने लोगो को अपना मुरीद बनाया है।

रूमानी आवाज और बेहतरीन संगीतकार ए आर रहमान वह नायाब हीरा है। जो कामयाबी और शोहरत की बुलन्दियों पर पहुँचने के बाद भी अहम से परे है। उनकी जाती जिन्दगी भी विवादों से कोसों दूर है।

संगीत के इस जादूगर ने ना सिर्फ हिन्दी सिनेमा में बल्कि तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़ सहित हॉलीवुड की फिल्मों में संगीत देकर अपना एक खासा मुकाम बनाया है। रहमान भारतीय सिनेमा की वह शख्सियत है। जो शब्दों से कम और संगीत से ज्यादा बोलते हैं।

सुरों के सम्राट अल्लाह रक्खा रहमान के लिए हम यही दुआ करते है। वो यूँ ही इस तरह संगीत के गुल्सता में खूबसूरत नगमों की तान छेड़ते रहे।