Sunday, January 23, 2011

फरमान या अपमान

२०११ का ये मेरा नया और पहला ब्लॉग । इस बार ठण्ड इतनी पड़ी की इसमें मैं भी ठंडी पड़ गयी अरे भई बीमार हो गयी। लेकिन अब फिर से हाज़िर इस नए साल में नयी सोच और आशा के साथ । मैं अब ठीख हुई तोह सोचा की इस गुलाबी धूप मेंकुछ लिखा जाय , तोह टी.वी ऑन किया और ली अपडेट सोचा की कुछ अच्छी खबर मिलेगी लेकिन ये क्या ? इक ऐसी न्यूज़ सुनी जिससे मुझे लगा की इस ठण्ड ने कुछ लोगो को मानसिक रूप से बीमार कर दिया है।

जींस , टॉप और मोबाइल ... अब तोह आप समझ ही गए होंगे । west uttar pradesh के muzaffarnagar की खाप पंचायत ने फरमान जारी करके लड़कियों के इन कपड़ो के पहनने पर पाबन्दी लगा दी है । पंचायत के मुखिया कहते है की इन्ही कपड़ो की वजेह से रेप जैसे अपराध बढ़ रहे है । इक तरफ हमारा देश हर जगह विकास कर रहा है और सुपर पॉवर की राह पर चल पड़ा है और साथ ही साथ २०२० तक विकसित देश बनने का प्रयास कर रहा है , लेकिन क्या वाकई में हमारे देश ने हर छेत्र में प्रगति कर ली है ?

नारी सशक्ति करण की बड़ी बड़ी बातें करते है और यह भी कहते है की "बेटो को पढ़ना फर्ज है तोह बेटी में क्या हर्ज़ है " पर लगता है ये बातें सिर्फ बोलने और बोर्ड पर लिखी ज्यादा लगती है । हमने चाहे जितना ही तकनीकी विकास कर लिया हो पर सामाजिक सोंच के रूप में हम उतने ही पीछे नजर आते है । लडकियां अगर जींस टॉप पहनती है तोह रेप बढ़ते है पर , बांदा की शीलू हो या फिर कानपुर की दिव्या इनके साथ रेप क्यों!!। इन लड़कियों ने तोह इस तरह के कपडे ऩही पहने थे । इमराना जो अपने ही ससुर द्वारा ही शर्म सार की जाती है । तब कहा थी ये पंचायतें और इनका फरमान !! लगता है की सारे नियम और फरमान लड़कियों के लिए ही बनाये गए है।

भारत के सविधान की बातें करने से भी हम नही चूकते है की सबसे पहले सविधान है ,फरमान सुनाते समय इसे ताक पर रख दिया जाता है । हम हर छेत्र में लड़कियों के अधिकार की बातें करते है की लडकियां आगे बढे देश के विकास में इनका भी योगदान हो । संसद हो या शिक्षा हर जगह लड़कियों के reservation की बातें करते है , पर मुझे लगता है की सबसे पहले इस तरह के फरमान सुनाने वालों का दिमागी कोटा बढाने की जरुरत है । भारतीय सविधान ने हर व्यक्ति को अपने अनुसार जीने का अधिकार दे रखा है , फिर ये पंचायतें हमारे सविधान से ऊपर हो गयी है ? लड़कियों के मामले में यहबात बेमानी सी लगती है तभी तोह वोह क्या पहने और क्या नही इसका फैसला लेने का भी अधिकार उन्हें नही है ।

इस तरह के फरमान केवल हमारी रूढ़िवादी और पहले से चली आ रही पुरुषो की महिलाओं के प्रति पुरानी सोच को ही दर्शाते है जिनकी जड़े बहुत मजबूत है और इसे मिटाने की जरुरत है । आज हम २१ वी सदी में जी रहे है और दिन पर दिन विकास कर रहे है फिर क्यों आज भी लड़कियों के प्रति इस मानसिकता में विकास नही हो पाया है । जब न्यूज़ देखी तोह इक़ मिनट के लिए मैंने सोंचा, क्या वाकई में लड़की होना इक सजा है ? आज का युग मोडर्न है सब जगह बदलाव आये फ़िरसमाज की इस तरह की सोच में कब बदलाव आयेगा। आखिर कब ??

चलते चलते बस इतना ही कहना चाहती हूँ की कपड़ो में बदलाव की जगह मानसिकता में बदलाव लाना ज्यादा जरुरी है । उन लोगो को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिये जो इसे गन्दी नजरों से देखते है ।