Friday, January 6, 2012

सुर का दूसरा नाम..रहमान!!

ख्वाजा मेरे ख्वाजा दिल में समा जा, शाहों का शाह तु अली का दुलारा सूफियाना गीतों को अपनी रूमानी आवाज में पिरोने वाले अल्लाह रक्खा रहमान किसी पहचान के मोहताज नही है। 6 जनवरी 1966 को मद्रास की यौमे पैदाइश ए. आऱ रहमान का असली नाम दिलीप कुमार है। सुरों के बादशाह रहमान के पिता आर. के शेखर तमिल और मलयाली फिल्मों में संगीत देते थे।

अपने संगीत से लाखों दिलों की तान छेड़ने वाले रहमान का बचपन दर्द के आलम में गुजरा। मात्र नौ साल की उम्र में उन्होनें अपने पिता को खो दिया। उसके बाद हालात यूँ बदले कि पूरा परिवार पर आर्थिक तंगहाली का मन्जर छाने लगा। रहमान की माँ कस्तूरी अब करीमा बेगम ने वाद्य यन्त्रों को किराए पर देकर किसी तरह गुजर बसर किया। परिवारिक जिम्मेदारियों के चलते पन्द्रह साल की उम्र में ही रहमान ने औपचारिक शिक्षा को छोड़ दिया।

रहमान ने सन् 1987 में परिवार सहित इस्लाम धर्म को अपना लिया। मात्र ग्यारह साल की उम्र से ही रहमान ने संगीतकारो के आरकेस्ट्रा में काम करना शुरू कर दिया था। टेलीविजन के प्रोग्राम में पियानों और गिटार बजाने वाले रहमान ने संगीत की पहली शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की। वह मित्र शिवमणि के साथ बैंड रूट्स के लिए सिथेंसाइजर बजाने का काम करते थे। इलियाराजा बैंड भी इनमे से एक थे जिनके यहाँ रहमान ने तकरीबन एक साल तक काम किया। पश्चिमी संगीत की तह को समझने के लिए रहमान ने आक्सफोर्ड के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कालरशिप मिली । जहाँ उन्होंने पश्चिमी संगीत में डिग्री भी हासिल की।

जिन्दगी के इस सघर्ष को झेलते हुए सन् 1991 में रहमान ने पहली बार गाने की रिकार्डिग शुरूआत की। रहमान ने पंचतन रिकार्ड इन स्टूडियों खोला। यह उनका निजी स्टूडियो है। रहमान को सन् 1992 में मणिरत्नम की फिल्म रोजा से वह नायाब मौका मिला। जिसने उन्हें रातों रात शिखर की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया। उसके बाद तो उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी पहली ही फिल्म से ही धमाल मचाने वाले रहमान का जादू आज भी कायम है। ऐसा पहली मरतबा हुआ जब किसी संगीतकार को उसकी पहली ही फिल्म के लिए ही पुरस्कार से नवाज़ा गया हो। टाइम्स पत्रिका की 2005 में टॉप टेन मूवी साउण्डट्रेक आफ आल टाइम की लिस्ट में रोजा का नाम भी शुमार था।

मोजार्ट आफ मद्रास कहे जाने वाले रहमान को 14 फिल्म फेयर अवार्ड,13 फिल्म फेयर अवार्ड साउथ, चार राष्ट्रीय पुरस्कार. दो अकादमी, दो ग्रेमी अवार्ड और एक गोल्डन अवार्ड का खिताब से नवाज़ा जा चुका है। 11 जनवरी 2009 को रहमान पहले भारतीय संगीतकार बने, जब उन्हें हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के गाने जय हो के लिए आस्कर अवार्ड से नवाज़ा गया था। यह क्रम यही नही रूकता विश्व संगीत में योगदान के लिए (2006) में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, छह बार तमिलनाडू स्टेट अवार्ड, मध्यप्रदेश का लता मंगेशकर अवार्ड ,पदमश्री (2006)और पदम विभूषण (2010) से सम्मनित किया गया है।

अवार्ड पुरूष बने रहमान प्रयोग करने मे भी महारत हासिल है। रहमान ने सुखविन्दर, मधु श्री, विजय येसुदास जैसी अनगिनत आवाजों को तराशा है। इसी प्रयोग का उदाहरण है फिल्म गुरू का गाना मैय्या मैय्या। यह गाना बहुत लोकप्रिय भी हुआ था। इस गाने को रहमान ने एक कनाडाई गायक मरियम टोलर से गवाया था।

रहमान ने गाने को इस तरह से अपने मखमली आवाज और धुनों में सजोंया कि जिसने सबको अपना कायल बना लिया है। इसकी बानगी रंगीला, अर्थ, जुबैदा, नायक, कभी न कभी, गूरू, साथिया, तहजीब, युवा, किसना, स्वदेश , नेताजी सूभाष चन्द्र बोस, मंगल पाण्डे, लगान, रंग दे बसन्ती, जोधा अकबर, गजनी और हालिया रिलीज हुई फिल्म रॉकस्टार में साफ दिखती है। ए आर रहमान ने फिल्मों मे संगीत देने के साथ कई जबरदस्त एल्बम भी दिये है जिनमें, देश की आजादी की 50वीं वर्षगाठ पर 1997 में वन्दे मातरम, भारत बाला के निर्देशन में जन गण मन बहुत मशहूर हुए है। रहमान ने कई विज्ञापन जिंगल लिखकर उनका सगीत भी तैयार किया है। उन्होंने जाने माने कारियोग्राफर प्रभु देवा शोभना के साथ मिलकर तमिल डान्सरों का ग्रुप बनाकर माइकल जैक्सन के साथ मिलकर स्टेज प्रोग्राम दिये है।

सुरो के बादशाह रहमान ने सूफीयाना संगीत से भरे कई नगमें भी लोगो की ज़ुबा पर छाये रहते है। अरजियाँ (दिल्ली6), पिया हाजी अली (फिजा), जिक्र (बोस द फारगेटन हीरो), मरहबा या मुस्तफा (अल रिस्लाह), कुन फाया कुन(रॉकस्टार) जैसे कई सुफियाना गानों ने लोगो को अपना मुरीद बनाया है।

रूमानी आवाज और बेहतरीन संगीतकार ए आर रहमान वह नायाब हीरा है। जो कामयाबी और शोहरत की बुलन्दियों पर पहुँचने के बाद भी अहम से परे है। उनकी जाती जिन्दगी भी विवादों से कोसों दूर है।

संगीत के इस जादूगर ने ना सिर्फ हिन्दी सिनेमा में बल्कि तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़ सहित हॉलीवुड की फिल्मों में संगीत देकर अपना एक खासा मुकाम बनाया है। रहमान भारतीय सिनेमा की वह शख्सियत है। जो शब्दों से कम और संगीत से ज्यादा बोलते हैं।

सुरों के सम्राट अल्लाह रक्खा रहमान के लिए हम यही दुआ करते है। वो यूँ ही इस तरह संगीत के गुल्सता में खूबसूरत नगमों की तान छेड़ते रहे।