नि संदेह यह बात गीतिका के सुसाइड नोट से भी साबित हुई है । मैं यहां कांडा का पक्ष नहीं ले रही हुं, लेकिन कांडा की गीतिका के परिवार से नजदीकियां घर वालों का गीतिका के मौत के बाद सारे राज से परदा उठाना कहां तक लाजमी है ? क्या वे नही जानते थे कि कांडा और उनकी बेटी के बीच क्या चल रहा है ? अगर फैमिली सही समय पर एक्शन ले लेती तो शायद गीतिका आज हमारे बीच होती । दूसरा पक्ष अनुराधा बाली उर्फ फिजा स्वभाव से तेजतर्रार वकील । 18 अप्रैल 2002 को फीमेल जज से झगड़ा करना, एग्जाम्स में मार्किग में शक होने पर बगावत करने वाली फिजा का मुंह में ब्लेड निगलना । बेबाक होकर धर्म परिवर्तन करके हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और भजन लाल के बेटे चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद से निकाह करना । यह जानते हुए कि वह पहले से ही शादीशुदा है ।वाकई में फिजा तारीफ ए काबिल है । उस समाज में अपने रिश्ते को जगजाहिर करना जहां आज भी पुरुष प्रधान है । ‘जहां पर मर्द की सौ गल्तियां भी माफ है, लेकिन एक औरत की पहली गलती ही उसकी आखिरी गलती साबित होती है ।’ अब आप बताइए इतनी बेबाक, खूबसूरत और बोल्ड अदा वाली अनुराधा बाली सुसाइड कर सकती है ?
पुरुषों की अहमवादी सोच
एक समय फिजा पर जान छिड़कने वाले यहां तक कि उसके लिए धर्म परिवर्तन भी किया, राजनीतिक ओहदा, परिवार, समाज सबसे बगावत करने वाले चांद मोहम्मद को अचानक क्या हो गया कि शादी के मात्र तीन महीने बाद 14 मार्च 2009 को फोन पर ही तलाक तलाक कहकर पीछा छुड़ा लिया । वही दूसरी तरफ गीतिका के प्यार का कलमा पढ़ने वाले सिरसा से विधायक और पूर्व राज्य गृहराज्यमंत्री गोपाल कांडा ही उसकी मौत का कारण बना । इन सब बातों से जो तस्वीर उभर कर सामने आती है वह है पुरुषों की अहमवादी सोच । पुरुष प्रधान समाज में मर्द ने औरत को यूज एंड थ्रो बना लिया है । जब मन किया गले से लगाया और जब दिल भर गया तो उसे मौत तक पहुंचाया!
औरत ही बलि का बकरा क्यों ?
हमारे समाज में हर गलती का ठीकरा औरत के सिर ही फोड़ा जाता है जबकि मर्द लाख गलती करके भी पाक साफ बना रहता है । भले ही मर्द अपनी मर्जी से ही दूसरी औरत के साथ रिलेशन में हो लेकिन इसका दोषी औरत को ही ठहराया जाता है । उसे नये नये नामों की उपाधि दे दी जाती है । पुरुष हर गलती के बाद वापसी कर सकता है पर एक औरत से यह अधिकार भी छीन लिया जाता है । परिवार, समाज सभी उससे मुंह मोड़ लेते हैं । उदाहरण के तौर पर मधुमिता हत्याकांड में आरोपी अमरमणि त्रिपाठी को कोर्ट 2007 में जब आजीवन कारावास की सजा सुनाती है तो उसी साल महाराजगंज से वह चुनाव जीत जाता है लेकिन उस मधुमिता जैसी औरतों को गलती करने पर सजा ए मौत मिलती है । गीतिका, फिजा, रुचिका, शेहला, प्रियदर्शिनी मुट्टू, जेसिका लाल, भंवरी, मधुमिता जैसे लोग मौत की दहलीज पार कर जाते है जबकि इनके हत्यारे आज भी जिंदा है । क्यों ये लोग सुसाइड नहीं करते, क्यों ये लोग मौत की दहलीज पार नहीं करते, आखिर क्यों ? यह एक सोचनीय प्रश्न है ? आज यह सारे उदाहरण हमारे सामने है क्योंकि ये सब राजनीति रसूखदारों से जुड़े है पर उनका क्या जो हमारे आपकी तरह एक सामान्य परिवार से आती है और फिर गुमनामी के भंवर में खो जाती है । इन्हें न तो मीडिया हाईलाइट करता है और न ही पुलिस ।
हरियाणा कनेक्शन
अभी तक जितने भी केस हमारे सामने आये हैं वो सब राजनीतिक हस्तियों से सरोकार रखते हैं लेकिन इसमें अधिकतर केस हरियाणा कनेक्शन को बयां करते हैं ।
जेसिका लाल–मनु शर्मा, रुचिका गिरहोत्रा– एस पी एस राठौर, फिजा–चंद्र मोहन, गीतिका–गोपाल कांडा
क्यों चुप हैं महिला राजनेता
गुवाहटी कांड पर बड़ी जिंदादली से लड़कियों के ड्रेसिग सेंस पर बयान देने वाली राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा की खामोशी का राज क्या ? लड़की का नाम जगजाहिर करने वाली अलका लांबा क्यों हैं चुप ? तब तो बड़ी बेबाकी से ममता शर्मा ने लड़कियों पर कमेंट कर दिया था पर यहां तो इतर परिस्थितयां न रेप और न छेड़छाड़ । क्यों नहीं करती अपनी तरफ से कोई कवायद, जिससे भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान और पुरुषों के बराबर समानता मिल सके । क्यों चुप है महिला राजनेता जो चुनाव के समय तो महिला अधिकार नियम और कानून की बड़ी–बड़ी बातें करती है । अगर वाकई में हमारी इन महिला राजनेताओं ने कुछ गंभीर पहल की होती तो शायद आज न तो गीतिका मरती और न ही फिजा घुटते हुए दम तोड़ती ।